Saturday, April 23, 2011

देश आजाद जनता गुलाम

कहने को लोकतंत्र परन्तु वास्तव में क्या हम इसके नियमों का पालन कर रहे हैं, या हमने जिसे चुना है, वो इसको साकार कर रहे हैं, या नहीं । अगर नहीं तो कौन है? इसका जिम्मेदार जनता या सरकार ।

कभी भी टूट सकता है, जनता के सब्र का बाँध । क्योंकि जनता अब काफी जागरूक हो चुकी हैं, क्योंकि आजादी के बाद अब तक की जितनी सरकारें हुईं उन्होंने देश का भला कम और अपना भला ज्यादा किया है ।
आज जो सबसे बड़ा प्रश्न है, वो यह है, कि क्या हम  1950  के बाद से पूर्णरूप से आजाद हुए हैं, या नहीं । अगर हैं, तो इतना वबंडर और सरकारों या राजनेताओं पर दोषारोपण क्यूं? और इन पर इतने इल्ज़ामात क्यूं? आखिरकार ये सरकार चलाने वाले तंत्र आखिर हम आपमें से ही तो हैं । इन्हें हमने ही तो ऐसा करने का मौका दिया है । तो फिर पछतावा क्यूं? परन्तु अगर हम, फ्लैशबैक में जायें और अंग्रेजी शासन व्यवस्था की तुलना अबतक की सरकारों से करें, तो कुछ मूल बिंदुओं पर हम इनमें शायद अंतर स्पष्ट न कर सकें । वो मूल बिन्दु है, भ्रष्टाचार, कालेधन की कमाई, जनता का शोषण, नस्लभेद, क्षेत्रवाद, क्योंकि ये सारी की सारी समस्यायें तब भी थी और आज भी है ।
हाँ फर्क इतना है, कि तब का भारत न तो एक देश था, न ही एक गणराज्य बल्कि तब टुकड़ों में विभाजित था, और आपसी मतभेद, सत्तालौलुप शोषण आदि सामाजिक बुराईयों से भरा पड़ा था । जिसके परिणामस्वरूप बाहरी आक्रमणकारियों ने इसे अपनी कमाई का ज़रिया बनाकर और यहां के लोगों का शोषण किया है, परन्तु स्थिति आज भी वैसी ही है । बहुत कुछ नहीं बदला है, हाँ बदला है, तो लोगों का रहन-सहन सोचने की क्षमता ।
जब देश गुलाम था तो अंग्रेजों के खिलाफ देश को एकजुट करने का बीड़ा जब गाँधी जैसे लोगों ने उठाया तो पूरा देश एक मंच पर आ गया जिससे अंग्रेजों जैसे बुद्धिमान और ताकतवर लोगों को भी हार मानना पड़ा । अगर मौजूदा स्थिति की बात करें तो आज भी देश कहने को तो आजाद है, परन्तु इसकी सत्ता जिन लोगों के हाथों में है, वो यह भूल गये हैं, कि उनका इस देश के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिये । अगर हम कुछ मुद्दों और शासन प्रणाली या सरकार के अधिकारों की बात करें तो लोकतंत्र एकमात्र जनता को गुमराह करने वाला शब्द है । और कुछ नहीं क्योंकि यहां की सरकार के पास जितने भी अधिकार हैं, वो उसको किसी भी प्रकार से उसको मनमानी करने से नहीं रोक सकता । और जनता लाचार ही लाचार तब तक बनी रहेगी, जब तक की अगली सरकार चुनने का मौका उसे न मिले ।
आज देश जागरूक हो रहा है, और जनता को भी एक मंच पर लाने वाले लोग मिलने लगे हैं, जिनके कार्यों से आप या हम किसी भी प्रकार का संदेह नहीं कर सकते ।  आज देश दो गुटों में बंट चुका है । एक है, सरकार पक्ष (या सत्तापक्ष चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल से हो) दूसरा पक्ष समाजसेवी या सीधे शब्दों में कहें तो अन्‍ना हजारे जैसे लोग ।
        मौजूदा सरकार कहने के लिए भ्रष्टाचार कालेधन और अन्य कई मुद्दों के खिलाफ मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में लड़ रहा है । वहीं दूसरी तरफ अन्‍ना हजारे जैसे लोगों के सामने आने से जनता को एक नई रोशनी भी मिल गयी है । अब जंग की शुरूआत भी एक मुद्दे से दोनों गुटों के बीच शुरू हो गई जो है- लोकपाल विधेयक
अगर हम इसे ‘देश आजाद जनता गुलाम’ के दृष्टिकोण से सोचें तो यह लोकपाल विधेयक एकमात्र बहाना है, जिसमें जनता के घेरे में सरकार है । बात न तो एक कमेटी के निर्माण एवं अधिकार तक ही सीमित है, बल्कि आम जनता इसको अपने मूलभूत अधिकारों से जोड़ रही है । और मैं कहता हूं, क्यूं नहीं जोड़े क्योंकि यह तो एकमात्र सरकारों की मनमानी के खिलाफ शुरूआत है । आज पहली बार आजादी के बाद ऐसा देखने व सुनने को मिला होगा, जिसमें जनता ने सारी राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ जन‍आंदोलन किया हो । सरकार की बात करें तो मनमोहन सिंह जी देश के प्रति वफादार कम और पार्टी के प्रति ज्यादा ही वफादार हैं और हों भी क्यूं नहीं, क्योंकि इनकी भी पृष्ठभूमि पार्टी के वफादारी से ही तो है ।
जब अन्‍ना हजारे जैसे लोग गाँधी जी के मार्ग का अनुसरण करते हुए जिस प्रकार सरकार को अपने आगे झुका दिया हो या बेबश कर दिया हो तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है । जहां पर देश में विभिन्‍न भागों में रोज-रोज न जाने कितने आंदोलन हो रहे हैं, परन्तु जो तरीका अन्‍ना हजारे जी का है, वो काफी सराहनीय है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो बच्चे से लेकर बूढ़े तक मजदूर से लेकर फिल्म स्टार तक, नौकर से लेकर अफसर तक इनके मंच पर नहीं आते । एक बार फिर अन्‍ना हजारे जी के इस आंदोलन ने यहां के लोगों को एकजुट होकर अपने हक की लड़ाई लड़ने का तरीका जो सिखला दिया है ।

और एक बार फिर से देश के लोग एकजुट होकर अपनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो चुके हैं । लोकपाल विधेयक तो एकमात्र बहाना था, जिसमें जनता के समक्ष सरकार को झुकना पड़ा- ‘क्योंकि अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे बहुत लड़ाई है ।’ और मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि अब जनता आजाद होना चाहती है । और इसे रोकना आसान नहीं होगा - क्योंकि पूरे आवाम की एक ही आवाज है ।
                 दररे-दररे से निकला बस यही आवाज है,
                 आगे अन्‍ना तुम चलो, हम तुम्हारे साथ हैं ।  


                                 जय हिन्द......

3 comments:

  1. bahut hi achcha lekh hai, isi tarah likhate rahiye aur apne vicharon se hamen avagat karaven.

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  2. hum aapke bicharo se kafi khush huye
    kahbi hbi mauka mila to hum aap ki ladayi me jarur samile hinge


    Jai hind

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  3. Hi dear
    we can see our country future bright now becuase " Andhere ke BAD Ujalla Hai, Anna ne Jo jyot Jalayee Hai Use Hume Aage Le Jana Hai."
    Today Corruption is in last stage and we need to combined together and fight against corruption.

    Thanks to all of you who supported Anna mission against corruption.
    Best Regards
    Arbind Gupta
    Sr.Engineer
    PHDCOMM Mumbai.

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I expect your comment on my blog.