एक बार फिर से हमारा देश भारत इतने विकास और उत्थान के बावजूद भी भावनात्मक विवादों की लड़ाइयों के आगे अपने आप को उबार नहीं सकेगा ?
क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसमें कुछ भी टिप्पणी करना आसान नहीं होगा । हम आज जिस फैसले का इंतजार कर रहे हैं, वो वास्तव में क्या दोनों के वजूद को साबित करने के लिए पुख्ता है? अगर नहीं तो ऐसे मामले न्यायालयों में या संगठनों के सहयोग या सलाह से नहीं सुलझाए जा सकते?
सबसे बड़ा सवाल इस मुद्दे का यह है कि अयोध्या का नाम अगर आज भी अयोध्या है, तो वह एक इत्तफ़ाक नहीं हो सकता । अगर वास्तव में बाबर ने वहां मंदिर न तोड़कर वहां मस्जिद का नये रूप से निर्माण करवाया तो उस पर विवाद कैसा? अगर उस मस्जिद पर विवाद है? तो और मस्जिदों और मंदिरों पर क्यूं नहीं?
आज सब लोग जो चाहें हिन्दू सम्प्रदाय से जुड़े हों या मुस्लिम समुदाय से, इन सब चीजों को मुद्दा बनाना महज एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति घृणा पैदा करना है, न कि किसी का हित सोचना क्योंकि न तो हिन्दू समुदाय के हितकारी उसे मंदिर ही बनने देना चाहते न ही मुस्लिम समुदाय के वादी प्रतिवादी उसे मस्जिद ही रहने देना चाहते हैं । सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है, कि हम आज भी इतिहास को कुरेदने की कोशिशों में लगे हुए हैं, जिससे भारतीय हमेशा आहत हुए हैं ।
हमारे ही कुछ लोग इस मुद्दे को हिन्दू और मुसलमानों के वजूद की लड़ाई से भी जोड़ने का प्रयास करते हैं, क्योंकि ये वो भली-भाँति जानते हैं, कि अगर हम इसे संप्रदाय से जोड़ते हैं तो हमारा लाभ अवश्य निकल आयेगा ।
बात वजूद की निकली है, तो किसका वजूद कितना पक्का है आप स्वयं इसका आंकलन कर सकते हैं? क्योंकि भारत जब मुगलों के द्वारा आहत हुआ तो न जाने कितने मंदिर टूटे होंगे, कितनी मस्जिदें बनी होंगी, पर उनमें से केवल अयोध्या में ही किसी मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद क्यूं है? अगर भारत का इतिहास और इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं, कि पहले मुगल भारत पर आक्रमण करने आये । और न जाने कितनी बार यहां के लोगों पर अत्याचार किया और इसे बार-बार लूटा । उन सारे मुगलों का एक ही मकसद था लूटना और यहां से धन चुराकर अपने प्रदेश वापस चले जाना । परन्तु इतिहास के पन्नों में बाबर एक ऐसा हमलावरी था जिसने अपना साम्राज्य यहां स्थापित किया । जिससे एक बात तो स्पष्ट हो ही चुकी कि वजूद पुराना बाबर का है, या भारत का?
उस भारत का जहां की सभ्यता दुनिया के अन्य देशों से काफी विकसित थी । उस भारत का जहां न कोई सम्प्रदाय हुआ करता था, न ही आपसी कोई टकराव । मुगलों से पहले का भारत और मुगलों के बाद का भारत काफी बदल चुका था । क्योंकि उससे पहले न कोई धर्म परिवर्तन ही हुआ था ना ही मस्जिदें तोड़कर मंदिर ही बने थे । हां ऐसा अवश्य होता था कि राम और रहीम सबके दिलों में होते थे न कोई राम और रहीम को अलग समझा, न ही रहीम या राम के नाम पर ईर्ष्या की ।
हम सब जानते हैं, पूरी दुनिया जानती है, कि अयोध्या राम की जन्म भूमि थी, और है । परन्तु इस तथ्य का न ही कोई सबूत है, न ही दिया जा सकता है? इस बात से मुस्लिम समुदाय जो इस मुद्दे में प्रतिवादी और वादी के रूप मे न्यायालयों में गुहार लगा रहे हैं, वह भी इस बात से इनकर नहीं करते कि अयोध्या ही राम की जन्मभूमि है, और आज की तारीख में अयोध्या ही दुनिया का एक मात्र ऐसा नगर है, जहां हर घर में राम-जानकी का मंदिर है ।
तो एक बात और स्पष्ट हो ही जाती है कि अयोध्या में मंदिर था या नहीं? हाँ विवाद यह है, जिसमें हिन्दू समुदाय बाबरी मस्जिद को ही राम मंदिर मानते हैं और उनके अनुसार प्राचीन राम मंदिर को तोड़कर बाबर ने बाबरी मस्जिद का प्रारूप दिया था, जबकि मुस्लिम समुदाय इस बात को मानने से बिल्कुल इन्कार करते हैं । तथा वो इस मस्जिद के बारे में यह बताते हैं, कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर ने नये रूप से खाली जगह में कराया था । जहां पर कोई भी मंदिर नहीं था । ना ही कोई मंदिर तोड़कर उसे मस्जिद बनाया गया ।
अगर विवाद के इतिहास पर नजर डालें तो इसको 61 साल लगभग हो चुके हैं । विवाद की शुरूआत 22-23 दिसम्बर 1949 से हुई थी, जिसके तहत मस्जिद के अंदर चोरी छिपे मूर्तियां रखने से कथित तौर पर हुआ । और अब यह मुद्दा काफी तूल पकड़ चुका है, जिसका निर्णय उच्च न्यायालय के हाथ में है । अगर देखा जाय तो दर्जनों वाद बिंदुओं पर फैसला आना है, लेकिन मुख्य मुद्दा ये है, कि वहां पहले राम मंदिर था या बाबर ने मस्जिद रिक्त जगह में बनवायी थी ।
बाबरी मस्जिद और विवादित घटना क्रम ः
1 * मस्जिद के अन्दर मूर्तियां रखने का मुकदमा पुलिस ने अपनी तरफ से करवाया जिसकी वजह से 29 दिसम्बर 1949 में मस्जिद के कुर्की के बाद ताला लगा दिया गया और तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम के देख-रेख में मूर्तियों की पूजा की जिम्मेदारी दे दी गयी ।
2 * 16जनवरी 1950 में हिंदू महासभा के कार्यकारी गोपाल सिंह विशारद ने मूर्तियों की पूजा के लिए सिविल कोर्ट में अर्जी दायर की जिसके फलस्वरूप सिविल कोर्ट ने पूजा आदि के लिए रिसीवर व्यवस्था बहाल रखी ।
3 * 1949 में निर्मोही अखाड़ा ने अदालत में तीसरा मुकदमा दर्ज किया जिसमें कोर्ट से यह अपील थी कि उस स्थान पर हमेशा से राम जन्म स्थान मंदिर था, और वह निर्मोही अखाड़ा की संपत्ति है ।
4 * 1961 में सुन्नी वर्क्फ़ बोर्ड और कुछ स्थानीय मुसलमानों ने चौथा मुकदमा दायर किया जिसमें यह जिक्र था कि बाबर ने 1528 में यह मस्जिद बनवायी जो 1949, 22/23 दिसम्बर तक यहां नमाज अदा किया गया है ।
5 * मुस्लिम पक्ष का तर्क यह था कि निर्मोही अखाड़ा ने 1887 के अपने मुकदमे में केवल राम चबूतरे का दावा किया था न कि मस्जिद पर जिससे मुस्लिम पक्ष राम चबूतरे पर हिंदुओं के कब्जे और दावे को स्वीकार करता है ।
6 * और मुस्लिम पक्ष यह भी मानता है कि अयोध्या राम की जन्मभूमि भी है । परन्तु बाबरी मस्जिद खाली जगह पर बनायी गयी थी न की तोड़कर ।
7 * लगभग 40 सालों तक यह विवाद लखनऊ तक ही था, परन्तु 1984 में विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने इसे राष्ट्रीय मंच पर एक अभियान की तरह ला खड़ा किया ।
8 * 1986 में स्थानीय वकील उमेश चन्द्र पाण्डेय की दरख्वास्त पर जिला जज फैजाबाद के.एम. पाण्डेय ने विवादित परिसर खोलने को एकतरफा आदेश दे दिया, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया मुस्लिम समुदाय के तरफ से हुई ।
9 * फरवरी 1986 में बावरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ और मुस्लिम समुदाय ने संघर्ष शुरू कर दिया ।
10 * 1989 में राजीव गाँधी ने चुनावी रैली को संबोधित किया जिसमें उन्होंने वहां की जनता को फिर से रामराज्य के सपने दिखाये । उसी समय विश्व हिन्दू परिषद ने वहां मंदिर का शिलान्यास भी कराया ।
11 * 90 के दशक में यह मुद्दा राजनीतिक मोड़ ले चुका था जिसमें राजीव गाँधी ने तथा अन्य पार्टियां जैसे भारतीय जनता पार्टी ने भी इसे राजनीतिक हवा देने की कोशिश की ।
12 * 1990 में कुछ राम भक्तों ने मस्जिद पर धावा भी बोला जिससे मस्जिद कुछ आहत भी हुआ ।
13 * 6 दिसंबर 1992 में देशव्यापी हिंन्दुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा मस्जिद के गुबंद को ध्वस्त कर दिया, जिसके फलस्वरूप जगह-जगह पर दंगे हुए, जिसमें काफी लोग मारे भी गये ।
14 * 2002 में एक बार फिर से देशव्यापी कार सेवकों ने अयोध्या चलो आंदोलन के तहत भाग लिया । परन्तु साधन व्यवस्था और सरकार के प्रयास से अयोध्या में कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन गुजरात की तरफ लौटने वाले कार सेवकों को मुस्लिम समुदाय के हमले का शिकार होना पड़ा ।
इन सारी घटनाओं से यही निष्कर्ष निकलता है, कि यह मुद्दा न तो ६१ साल पुराना है, न ही किसी समुदाय के पक्ष का न ही विपक्ष का और ना ही किसी का वजूद ही पक्का होना है । हां एक बात तो अवश्य तय है, कि निर्णय किसी के भी पक्ष में क्यों न जाये, इसे न तो वहां मस्जिद बनना है, न ही मंदिर ।
क्योंकि अगर फैसला मस्जिद के पक्ष में जाता है, तो हिन्दू समुदाय उस फैसले को स्वीकार नहीं करेगा, और अगर फैसला हिंदू समुदाय के पक्ष में जाता है, तो मुस्लिम समुदाय उसे नहीं स्वीकार करेगा । क्योंकि ये ऐसे मुद्दे हैं जिसका फैसला वहां के लोग करेंगे, इस देश की जनता करेगी, और जनता सिर्फ शांति चाहती है । न तो वह दंगा चाहती है, न ही एक समुदाय का दूसरे समुदाय से घृणा ही जानती है । और हम तो उस देश के रहने वाले हैं, जहां पर हमारे लिए प्रेम ही सबकुछ है? हम उस मंदिर और मस्जिद के लिए क्यों लड़ें, जो हमारे अपनों के ही कब्र के ऊपर बनी हो? हम ऐसे उस राम और रहीम को उन मंदिर मस्जिदों से मुक्त कर देना चाहते हैं, जो कि विवादित ढांचों में बसते हैं ।
हम उस राम, रहीम को अपने हर भाईयों के हृदय में देखना चाहते हैं, जहां एक ही हृदय में मंहिर भी हो, मस्जिद भी, गिरजा घर और गुरूद्वारा भी-
क्योंकि मंदिर और मस्जिद का वजूद हमारे और आपसे है । हम रहेंगे तो मंदिर में भी नमाज अदा कर लेंगे, हम रहेंगे तो मस्जिद में भी दीप जला लेंगे और हमारे राम रहीम भी तो यही कहते हैं-
“मोको कहाँ ढूंढ़े है बंदे, मैं तो तेरे पास में.........”
- मुकेश पाण्डेय
good ...............
ReplyDeleteYou are a good writer Mukesh, I like your concepts and way of your thinking is realy appriciable ... keep it up....
ReplyDeletereally idealistic as well what u try to dig and figure out from this issue that will be worthily for both communities .
ReplyDeleteYou have the way to pan down this issue and 90% Indian only wants to have this conclusion . What happens next , lets wait and watch .
Good Concept , thought , fair ideology . I over enjoyed to read this article .
Rakesh
Tech Lead