Karma is selfless service, the path by which the mind is most quickly purified and its limits transcended. The karma yogi works hard, both physically and mentally. He seeks to eliminate the ego and its attachments, to serve humanity without expecting rewards, and to see unity in diversity . This enables him to tune to the one underlying divine essence that dwells within all beings.
Tuesday, July 27, 2010
**बात निकली है, तो दूर तलक जायेगी***
कश्मीर घाटी में बदलती स्थिति और तनाव सरकार की दोहरी नीति की ओर इशारा कर रही है, जहाँ सरकार अर्द्धसैनिक बलों को हटाकर सेना द्वारा फ्लैग-मार्च करा कर वहां की जनता के बीच आक्रोश बढ़ा रही है । वहीं सरकार के घटक दल के रूप में उमर अब्दुला अलग ही राग अलाप रहे हैं । जिससे सरकार की दोहरी नीति साफ झलक रही है ।
आज की तारीख में कश्मीर समस्या देश के सामने तथा मौजूदा सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि आतंकवाद की जड़ वहीं से शुरू होती है । आज सरकार जो आतंकवाद से लड़ने का दावा कर रही है, तथा बार-बार पाकिस्तान से वार्ता के लिए इच्छा व्यक्त कर रही है, वो स्वयं अपने घटक दलों पर लगाम कसने में असमर्थ है । जो स्थिति पाकिस्तान में है, जैसा कि आप जानते हैं, वहां की सरकार कठपुतली बनी है, वही स्थिति कश्मीर में भारत के साथ है, क्योंकि वहां पर सरकार न तो हुर्रियत नेताओं पर और ना ही स्वयं वहां की राज्य सरकार पर नियंत्रण कर पा रही है, वहां की राज्य सरकार जो आतंकवाद से लड़ने का दावा तथा आतंकवादी घटनाओं की जिम्मेदारी पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ बताती है, तो कभी उन्हें, सैनिकों द्वारा मारे जाने पर शहीद , जिससे यह तो स्पष्ट है, कि सरकार की दोहरी नीति, जिसे आम जनता नहीं समझ सकती है ।
वहां कुछ दिनों पहले स्थिति यह थी कि वहां सैनिकों को डेडा तथा प्रदर्शनकारियों को पत्थर पकड़ा कर सरकार एक अलग ही, मैच कराने के फिराक में है, जिसकी वजह से जितनी त्रस्त वहां की जनता है, उससे अधिक सैनिक लाचार नजर आते हैं । अपने साथी का सर फटने पर इलाज कराने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है ।
वहां के हालात ऐसे हैं, कि जनता किधर जाये, सरकार के साथ या वहां के हुर्रियत नेताओं के साथ जो इसे अलग दर्जे की माँग में लगे हुए हैं, जो मंचों से शाँति की माँग तो करते हैं मगर वहां के लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने एवं उन्हें गुमराह करने में भूमिका निभा रहे हैं । ऐसी स्थिति में वहां की जनता काफी परेशान एवं लाचार सी हो चुकी है, वो न चाहते हुए भी अपने लोगों पर पत्थर बरसाने पर मजबूर है । उनकी स्थिति “एक तरफ कुआँ एक तरफ खाई” की बनी हुई है ।
मौजूदा स्थिति की वजह कश्मीर को अलग दर्जे की मान्यता भी हो सकती है, क्योंकि कश्मीर अन्य राज्यों से अलग इसलिए है, कि वहां दूसरे राज्यों के लोगों को बसने की आजादी नहीं है, जैसा की बाकी अन्य राज्यों में, धरती जन्नत कहा जाने वाला कश्मीर आज पर्यटन स्थल तो दूर रोजगार के लिए भी सहज नहीं है, जिससे वहां की जनता दूसरे राज्यों की जनता से मुखातिब हो सके, तथा अपने विचारों का आदान प्रदान कर सके । अगर ऐसा संभव हो सके तो, स्थिति अपने आप धीरे-धीरे सही हो सकती है ।
अगर सरकार वास्तव में कश्मीर की तरफ से चिंतित है, तो वह सबसे पहले वहां के लोगों के बीच जाय और वहां की समस्याओं से वाकिफ हो, न कि हुर्रियत मीटिंग करे- अगर सरकार अन्य राज्यों में संवेदनशील संगठनों पर बैन लगा सकती है, तो वहां क्यों नहीं, अगर हम असम, पंजाब एवं अन्य राज्यों से आतंकवाद खत्म कर सकते हैं, तो वहां क्यूँ नहीं-?
शायद सरकार अपना राजनीतिक समीकरण सही करने के लिए, वहां के हुर्रियत को खुश रखना चाहती है, जिससे उसे अन्य राज्यों में वहां के लोगों से सहानुभूति रखने वाले लोगों का वोट बैंक बढ़ सके ।
ऐसा नहीं कि इससे पहले किसी सरकार ने पहल न की हो, या किसी सत्तादल की सरकार या विपक्षी दल की पहले की सरकारों ने इस क्षेत्र में प्रयास न किया हो,- हाँ ऐसा अवश्य हो सकता है, कि उनके प्रयास सही एवं निष्पक्ष भले न हों-
क्योंकि सबसे पहले इसकी पहल स्व. लालबहादुर शास्त्री जी के द्वारा की गयी- परिणाम क्या हुआ - हमें तथा इस देश को, मिट्टी के लाल कहे जाने वाले जनप्रिय नेता को गवाँना पड़ा । ताशकंद समझौता आज भी पूरे देशवासियों के लिए अबूझ पहेली ही है, क्योंकि पहली बार ११ जनवरी १९६६ को भारत और पाकिस्तान के बीच मशहूर समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री जी का देहांत हो गया । जिस पर उनकी पत्नी ललिता जी ने आरोप लगाया था कि उन्हें जहर दे दिया गया है । अभी भी उनके पुत्र सुनील शास्त्री उस हादसे से उबर नहीं पाये हैं ।
दूसरा समझौता जो कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला में सम्पन्न हुआ, जिसमें भारत की तरफ से इंदिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे । इस समझौते की जो सबसे खास बात रही वो कि दोनों देशों ने इस बड़े मुद्दे को बिना किसी अन्य देश की मध्यस्थता के ही पूरा कर लिया । शिमला समझौता भारतीय दृष्टिकोण से भारत का पाकिस्तान को समर्पण था, क्योंकि भारत की सेनाओं ने पाकिस्तान के जिन प्रदेशों पर अधिकार स्थापित किया था, उसे सहज ही छोड़ना पड़ा । इससे भारत को मात्र एक ही लाभ हुआ, जिससे भारतीय छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ बरकरार रहे ।
आज की स्थिति से अगर हम आजादी के समय की स्थिति से तुलना करें तो आप उसे बेहतर नहीं कह सकते हैं, क्योंकि- समझौते और शांति के प्रयास के साथ-साथ युद्ध की स्थिति भी बरकरार रही है । इतिहास पर नजर डालें तो विभाजन (1947) में हुआ और साथ-साथ तीन युद्ध (1947-48,1965, तथा 1971) हुए । इसके अतिरिक्त शिमला समझौता (1972), लाहौर-घोषणा-पत्र (1999) के साथ कारगिल युद्ध (1999)- असफल आगरा शिखर वार्ता (2001), इस्लामाबाद संयुक्त वक्तव्य (2004) भी शामिल हैं ।
इन सारे प्रयासों के बावजूद, सीमा पार से आतंकवाद जारी है, तथा युद्ध की स्थिति हमेशा बनी हुई है, जिसमें दोनों देशों के हुक्मरान तथा वहां के अलगाववादी विचारधारा के लोग आज भी एक दूसरे पर आरोप लगाने से बाज नहीं आते ।
चाहे शाँति बहाली की तरफदारी भारत की तरफ से हो या पाकिस्तान की तरफ से मगर निर्णायक मोड़ पर लाकर उसे युद्ध की स्थिति में तब्दील करने में दोनों की भूमिकायें संदेहास्पद अवश्य हैं, क्योंकि इन दोनों देशों के हुक्मरान ये फैसले अपने लाभ व हानि के लिए तय करते हैं, न कि वहां की जनता के लिए जिससे बगावत व व्यवधान उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है ।
पहली बार सत्ता में गैर कांग्रेसी सरकार के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने, एक नयी सोच के साथ पाकिस्तान के साथ शाँति पहल के लिए लाहौर बस सेवा आरम्भ किया, जिसमें वे अपने शतरंज के बिछाए गये इस बिसात पर विफल रहे, क्योंकि कुछ ही दिनों बाद कारगिल जैसे युद्ध से भारत और पाकिस्तान के बीच बची-खुची मिठास भी कड़वाहट में तब्दील हो गयी । मगर वाजपेयी के इस सोच की पहल पाकिस्तान सरकार जो कि प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में नहीं थी, उसके तरफगार मुशर्रफ साहब ने आगरा-शिखर वार्ता के रूप में की । मगर जब बात कश्मीर मुद्दे की आयी तो वे अपनी कड़वाहट छुपा नहीं सके, और वर्ता वहीं आगरा के रेस्टोरेन्ट के टेबल पर ही सिमट गयी । इस बड़ी घटना क्रम में भारत ने भी अपना पैर पीछे नहीं किया, जिसकी वजह से कश्मीर की घाटियों में सैनिकों की चौकसी और बढ़ा दी गयी ।
एक बार फिर वहां की जनता इन दोनों की खलबलाहटों की शिकार हुई । कभी पाकिस्तानियों ने घुसपैठ शुरू की तो इधर से भारत ने ब्लूचिस्तान तक अपना आक्रमण तेज रखा । मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल जो पाकिस्तान गया, जहां पर पाकिस्तान की जनता ने भी उसका जोरदार स्वागत किया, जिसके परिणाम स्वरूप दोनों देशों के बीच संबंधों में कड़वाहटें लोगों से निकलकर केवल हुक्मरानों के बीच ही बनी रहीं । मगर एक बार फिर अचानक मुशर्रफ की सरकार खतरे में आयी और वहां की सरकार बदल गयी, उसी दौरान बेनजीर भुट्टो की दुर्घटना से पाकिस्तान का अंदरूनी राजनीतिक समीकरण भी बदल गया । जहां पाकिस्तान वहां के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न चुनकर, बेनजीर भुट्टो के सहानुभूति के चलते उनके पार्टी को सत्ता में वापस लायी तो लगा कि कश्मीर समस्या एक नये सिरे से शुरू होकर शांतिपूर्ण रूप से इसका समाधान निकल जायेगा, परन्तु समय के साथ, जरदारी का भी तेवर सातवें आसमान पर आ गया और जब इसकी पहल के लिए हाल ही में वहां के विदेशमंत्री बुशुरी भारत दौरे पर आये तो वो भी वही राग अलापने लगे ।
जहां तक कश्मीर समस्या का प्रश्न है, वो मात्र एक बहाना है भारत और पाकिस्तान का विभाजन, जिसकी वजह से लोग भारत और पाकिस्तान विभाजन का एक दूसरे से बदला लेना चाहते हैं और जब जिसको मौका मिलता है, वो कश्मीर मुद्दे को उछालकर युद्ध का राजनीतिक माहौल बना देता है ।
क्योंकि किसी भी देश की जनता जो आज के समय में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगी है, जो अपने आप को व्यस्त रखना चाहती हैं वो कभी भी किसी चीज के लिए युद्ध के लिए तैयार नहीं हो सकती, क्योंकि सरहदों पर लकीरें जो इंसान बनाना चाहता है, वह यह अवश्य भूल जाता है, कि सरहदें हमेशा-हमेशा के लिए नहीं होतीं, वो कभी-भी बनायी और बिगाड़ी जा सकती है । क्योंकि कभी बाबर ने भी यह सपना नहीं देखा होगा जो उसने अपनी सरहदें निर्धारित कीं वो बरकरार नहीं रह पायेंगी ।
खैर इतिहास जो भी हो, हमें अपने भविष्य के लिए, इस वर्तमान में कुछ कठोर निर्णय अवश्य लेने पड़ेंगे । जिससे देश के इस अभिन्न भाग में शांति बरकरार हो सके ।
सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, उसे एक आम सहमति बनाकर, जो आग कश्मीर में धधक रही है, उसे निष्पक्ष होकर बुझाना होगा, क्योंकि एक बार की मौत अच्छी होती है, उसके बजाय जो किश्तों में मिले ।
अर्थात सरकार को अपने अभिन्न अंग में सामान्य राज्यों की तरह से व्यवस्था शुरू कर, इस समस्या से निजात अवश्य पाना होगा नहीं तो- संसद पर हमला, ताज पर हमला, और इस तरह के न जाने कितने हमले अवश्य देखने को मिलते रहेंगे । और कश्मीर धरती की जन्नत न होकर कुरूक्षेत्र अवश्य बन जायेगा, जिसमें इंसान रोज ब रोज दफन होता रहेगा और इंसानियत का संदेश, शांति का प्रतीक कहा जाने वाला भारत अपने आपको कभी भी माफ नहीं कर सकेगा, क्योंकि कहावत है-
“ बिना बलिदान के इतिहास नहीं लिखे जाते
ना ही, उसका कोई महत्व होता है । ”
जय हिंद
मुकेश पाण्डेय
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अच्छे विचार
ReplyDeleteवास्तव में सरकार को ऐसा करना चाहिए.
अगर भारत के जम्मू में है. तो क्यों यह अन्य राज्यों से भिन्न है.
यह हमारी सरकार की गलत निर्णय और अस्थिरता के लिए ही है.
बहुत बहुत धन्यवाद अच्छा विचार के लिए जी मुकेश......
this is good.but you need to explore it Indian point of view.who is the leader?,who is paid money for this.why only involved youth not all people of Kashmir?
ReplyDeletei am very much agree with your view. I think every thing which is happening in Kashmir is indirectly supported by present government otherwise there is no any action taken by government after getting clear evidence of the involvement of outer enemies in Kashmir.
ReplyDeleteA very nice effort to explore the Kashmir issue.
i am very much agree with your view. I think every thing which is happening in Kashmir is indirectly supported by present government otherwise there is no any action taken by government after getting clear evidence of the involvement of outer enemies in Kashmir.
ReplyDeleteA very nice effort to explore the Kashmir issue.
Are mukesh ji, aap ke ye baat bahut hi achchi aur samay ke anurup hai. mai is baat se bahut hi prabhawit hua.
ReplyDeleteaise badhiya lekh ke liye bahut hi dhanyavaad.
Tarun(tarunsmailsiwan@yahoo.com)
We have to stand by joining their hands, souls
ReplyDeleteand money forgetting all ur personel benefit, big or tiny querrals. We have to first recognize enemy with in.
bhaieyo dusmano se
bahut saf saf shabdo me batana padega ke
dusmano humse panga mat lo varna ghar ghush me mare ge.
hi Mukesh,
ReplyDeleteDue to you i got a lot of news which i never listen in detail. Thanks for writing and keep it up..
nice writing..
kamlesh puri