Monday, August 31, 2009

राजनीति में युवाओं की भागीदारी

राजनीति में युवाओं की भागीदारी
- मुकेश कुमार पाण्डेय

हमारा देश (भारत) एक बहुत ही बड़ा प्रजातांत्रिक देश है । जिसकी विशालता, हमें उसके राजनीतिक उथल-पुथल से मालूम होता है । हमारे इस देश में बहुत ही अहम विभूतियां पैदा हुई, जिन्होंने अपने विचारों से विश्‍व के राजनीतिक परिदृश्य पर अद्‌भुत छाप छोड़ी । आज भी उनका कद्र देश के बाहर उतना ही है, जितना अपने देश में । आज का समय युवाओ के लिये बहुत ही उत्कृष्ठ है । क्योंकि इस समय हमारे देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय है । उनमें युवाओं की कमी आपको जरूरत महसूस होगी, उनके पास वही मुद्दे, वही विचार, वही सोच आज भी है, जो सन्‌ १९४७ में था । अपितु हम उसे संतोषजनक नहीं कह सकते । जब हमारा देश आजाद हुआ उससे पहले यह अनेक राज्यो, विरासतों में विभाजित था । उस समय भी राजनीतिक परिदृश्य वही थे, जो आज है । वही क्षेत्रवाद, वही जातिवाद, एवं वंशवाद से ओतप्रोत, गंदी राजनीति, जिसकी वजह से हमारी संस्कृति कभी नष्ट हुई तो कभी विदेशी लुटेरों का सम्राज्य स्थापित हुआ । जिनके आपसी कलह की वजह से ही महाराणाप्रताप जैसे सच्चे देशभक्‍त के समय मे अकबर महान कहलाया । वो क्या था ? प्रश्न हमारे बीच आज भी वही है कि हम उन लोगों को आज भी प्रोत्साहित कर रहे है । जिनमें वंशवाद की राजनीतिक, तो कहीं एक ही देश में उसको धर्म के आधार पर, अलगाव का हवा दिया जा रहा है । हम अगर किसी मंच से किसी एक समुदाय की रक्षा की बात कह दें, तो उसे दूसरे समुदाय के प्रति बगावत करार दिया जाता है । आखिर कब तक होता रहेगा सब -
“ करता नही क्यूँ, दूसरा कुछ बातचीत
देखता हूँ , मैं जिसे वो चुपचाप तेरी महफिल में ।
आखिर कब तक हम अपने ही घरो में मेहमान बनकर रहेंगे ! कब तक !
हम नौजवानों ने ही इसकी संस्कृति को बचाया है । जब-जब समय आया है , तब-कोई न कोई, सुभाष बना, तो कोई भगत सिंह । आज का सही समय आ गया है, अपने-आपको साबित करने का, अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने का । हम पुलिस-चौकी से लेकर, सीमा तक ही नहीं, लोकसत्ता में भी अपनी कौशल निस्वार्थ भाव से कर सकते है । आज के नेता जो सिपाहियों के मरने को भी राजनीतिक मुद्दा बना देते है । उसे रोकना होगा ! नहीं तो हर सिपाही, हर जवान, अपने कर्तव्य को निभाने से चुक जायेगा । हमारा अपने देश के प्रति ऐसा ही भाव होना चाहिए कि-
जन्म से आग हूँ, शबनम नहीं,
इसलिये ताशिर मेरा, नाम नहीं ।
जग संवर जाये, मेरी कोशिश हों ये,
हम बिखर जाये , कोई गम नहीं । ।
आज जैसे कुछ राजनीतिक पार्टियां, वंशवाद को युवाओं की पार्टी बतलाती है । इसमें कितनी सच्चाई है? आप इसका स्वयं आकलन कर सकते है कि उन युवाओं में कौन है? ध्यान देने वाली बात है- उनमें कोई भुतपूर्व प्रधानमंत्री के लड़के है, तो कुछ कैबिनेट मंत्री के सुपुत्र है । सोचने वाली बात यह है कि एक आम आदमी ऐसा अवसर क्यों नही पाता है , क्यों नही हम, आप राजनीति का हिस्सा बन पाते है? दूसरों के सुख-दुख को उतना नहीं जान पाते जितना U.S में पढ़ाई से लौटने के बाद पूरा दिन ऐसो-आराम में रहने वाला व्यक्‍ति चन्द कुछ पल, घंटों, रातों में उनके सुख-दुख को अपना बताने में सफल होता है, और वहीं समाज जिनके सारी परेशानियों से लेकर खुशियों में आप होते हैं । आप उनके प्रिय नहीं बन पाते आप मसीहा नहीं कहलाते । मैं यह कहना चाहता हूँ कि वह आदमी ज्यादा कर्मठी ही या सुविधायुक्‍त एवं अवसरवादी नही है । अवसरवादी तो हम, आप है जो कभी भी अपने कार्यों, अपने लोगों के अलावा सोचा ही नहीं । हम उनके बीच रहकर भी उनके विश्‍वास में खरे नहीं उतरते । जो एक देश के प्रति होना चाहिये जो की समाज के प्रति होना चाहिए । हम पुत्र हैं, पहले भारतमाता के फिर अपनी माँ के जिसने हमें पाला, हम ऋणी है, उसके जिसने हमें बचपन से लेकर अबतक रहने का, खेलने का, काम करने का, यहाँ का होने का उपहार दिया- जरा सोंचे हमने क्या दिया ? बदले मे ं इसे, समय आने पर निराशा ही हाथ लगी - क्योंकि हममें से ही कोई जयचंद्र हुआ तो कोई बी० पी० सिंह, एक ने मुहम्मद गोरी को अवसर दिया तो दूसरे ने जाति के आधार पर देश को बर्बाद किया । वही राजनीति हमारे देश की राजनीति में धूरी की तरह काम कर रहा है । जितनी भी क्षेत्रीय पार्टियां है उनकी राजनीति क्षेत्रवाद, धर्मवाद, से जातिवाद तक सिमट कर रह जाती है । सबसे शर्मनाक बात यह है कि बड़ी पार्टियां इस मामले में कम नहीं है ।
प्रश्न यह नहीं है कि कौन क्या है? उसका उदेश्श्य क्या है? प्रश्न यह है कि हमें उससे मुक्‍ति कैसे मिलेगी, हमारे प्रयास क्या होंगे ? क्योंकि हमें भी सावधान रहना पड़ेगा । मैं विश्‍वास करता हूँ कि हर आदमी उब चुका है ऐसे राजनीतिज्ञों से, और हम युवा भी तैयार है उनका जवाब देने के लिये -तभी-
है लिये हथियार दुश्मन , ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार है, सीना लिये अपना इधर ।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में हैं । ।

दिल में तूफानों की टोली, और नसों में इन्कलाब ,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे, हमें कोई रोको न आज ।
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंजिल में है । ।

आज जरूरत हैं हमारी और हम उम्मीद करते हैं कि आप लोग बदलेंगे , इस समाज को , इस देश को अगर हम प्रयोगों, अनुप्रयोगों से किसी व्यक्‍ति को जीवन देने में सफल होते तो हम नये अनुसंधानों के माध्यम से चाँद, मंगल, पर पहुँच कर वहाँ की परिदृश्य बदल सकते हैं । तो आखिर इस देश की बुराइयों को क्यों नहीं समाप्त कर सकते हैं । हमें एक होने की जरूरत हैं महत्वकांक्षी बनने की जरूरत हैं, प्रेम, सौहार्द स्थापित कर सामाजिक समन्वय लाने की जरूरत हैं । तो सबसे पहले हमारा एक ही उदेश्श्य हों वो हों - राष्ट्रीय व सामाजिक समन्वय । हमें राजनीति नहीं करनी हैं धर्म की, जाति की, क्षेत्र की, हमें राजनीति करनी होगी राष्ट्र उत्थान की । हमें घोषणापत्र जारी करना होगा , देश के सामाजिक संतुलन का, एक दूसरे को जोड़ने का , हमें सोचना होगा पूरे देश की जनता का, न की बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक का । क्योंकि शक्‍ति जोड़ने से बनती है तोड़ने से नहीं । हमारा देश एक है और हमेशा एक रहेगा । हम इसे फिर टूकड़ों में नहीं बँटने देंगे । हमारा एक ही लक्ष्य होगा एक ही गीत होगा- “एक सद्विपा बहुधा वन्दति ” मतलब एक भारत जिसमें सबकुछ समाहित होगा ।
हमें अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरे उत्थान में करना होगा । क्योंकि किसी भी देश की मजबूती उसके राजनीतिक कौशल, निपुणता से होती हैं । हम अपना वर्चस्व विश्‍व पटल पर दर्शा सकते है । मैं आह्वान करता हूँ, उन तमाम नौजवान दोस्तों से जोकि राजनीति में रूचि नहीं रखते हैं जिससे उनको लगता है कि इसमें उनका नुकसान नहीं है तो यह केवल उनका एक भ्रम है । क्योंकि देश की सारी घटना चक्र वहीं से शुरू और वहीं खत्म होती है । मैं चाहुँगा कि आप सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझें और एक ऐसा माहौल बनाये जिससे हमारा देश, हमारी पीढ़ी, और हमारे अपने हम पर तथा अपने देश पर गर्व कर सकें क्योंकि -
`` we can not change anything unless we accept it ''
धन्यवाद
मुकेश कुमार पांडेय