Friday, March 12, 2010

नेता बनाम राजनेता

नेता बनाम राजनेता जैसा कि आप सब परिचित होंगे इन शब्दों से, और उन लोगों से भी जो ये होने का दावा करते है, तथा जो होगे भी, और थे भी । ये शब्द न तो किसी कवि की कल्पना है, न ही किसी लेखक का काल्पनिक पात्र ही है, ये वो शब्द है, जिनकी वजह से हमारे वजूद बने, बिगड़े और बार-बार किसी न किसी घटना एवं दुर्घटना के संयोयक रहे है । जिस प्रकार किसी विद्यालय मे अध्यापक का उत्तरदायित्व उस विद्यालय के छात्रों के प्रति होता है, किसी परिवार के मुखिया का उसके पूरे परिवार के प्रति होता है, वैसे ही नेता उत्तरदायी होता है, उस समाज का, उस देश का ।
कहने सुनने मे तो बहुत ही कम अन्तर लगे शायद नेता व राजनेता में परन्तु दोनो एक दूसरे से काफी भिन्‍न है । जब हमारा देश गुलाम था तब नेता हुआ करते थे । चाहे, वो गाँधी हो, सुभाष हो या लाला जी हो । ऐसा नही की तब राजनेता नही थे, या आज नेता नही है, या हुए नही । जब नेता में सत्ता लौलुप्ता, लालच, बेईमानी, जैसे गुण जुड़ जाते है । तो वही बन जाता है, राजनेता ।
मैंने इन सारी बातों पर प्रकाश डालने का प्रयास नही किया कि , आप इन सब चीजों से परिचित नही होंगे, अपितु ये सारी चीजे ही इनमें अन्तर स्पष्ट करती है । आज हमारा देश जो विश्‍व का सबसे बड़ा एक प्रजातांत्रिक देश है, जहां इतनी जनसंख्या के बावजूद, इतने भेदभाव के बावजूद व्यवस्थित या अव्यवस्थित रुप से दिन व दिन प्रगति की ओर अग्रसर है ।

वास्तव में अगर देखा जाय तो देश की बागडोर जिन हाथों में है, तथा अधिक दिनो तक रही है, वह कहीं न कहीं प्रजातांत्रिक होने के दावे को शत प्रतिशत सही नही ठहराता है । कांग्रेस जो आज सत्ता मे हैं, तथा आजादी से अब तक सबसे अधिक दिनो तक राज्य किया है, उससे राजतंत्र की परिछाई साफ नजर आती है । और इसे हम तो क्या स्वंय कांग्रेस के राजघराने के सदस्य भी स्वीकार करते है । कांग्रेस जो आजादी से लेकर आज तक देश में शासन कर रही है, उसमें नेताओं की कमी और राजनेताओं की अधिकता स्पष्ट रूप से सामने आ रही है ।
आज जो कांग्रेस के युवराज जो आम जनता मे एक नेता की छवि बना रहे है वो अवश्य सराहनीय है, परन्तु कांग्रेस उन्हें, नेता नही राजनेता बनाना चाहती है, शायद उनकी भी दिलचस्पी यही हो सकती है । क्योंकि कांग्रेस का इतिहास रहा है, कि जो नेता आम लोगो में अपनी पहचान एक सच्चे राष्ट्रभक्‍त एवं जनता की सेवा के लिए बल पर बनाता है, उसे या तो निलंबित किया गया है, या वो घटना एवं दुर्घटना का शिकार अवश्य हुआ है । इसमे कांग्रेस की मर्जी रही हो या नही आप अवश्य समझ सकते है ।
सबसे पहला उदाहरण है, जब देश गुलाम था । तो नेता जी सुभाष चन्द बोस को राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, परन्तु दुर्भाग्यवश उनकी लोकप्रियता की वजह से या कार्यकुशलता की वजह से या फिर राजगद्दी की लालच के लिये उन्हे हटाकर जवाहर लाल नेहरू को देश का राजनेता नियुक्‍त किया गया ।ऐसे कई उदाहरण आप स्वंय पा सकते है, चाहे वो संजय गाँधी का विमान दुर्घटना हो या राजेश पायलट या आखिरकार वाई० एस० आर० रेड्डी का दुर्घटना ही क्यों नही- ये सारी घटनाए एवं दुर्घटनाए सिर्फ और सिर्फ नेता बने रहने या देश उत्थान मे अपने योगदान के जिद्द की वजह हो सकती है ।
मेरा संदेहास्पद टिप्पणी करने का अर्थ यह नही कि मैं अपने ही विचारो से सहमत नही हूँ या फिर यह एक कोरी कल्पना है । मेरे अंदर केवल एक भय है, वो है कि मैं चाहते हुए या न चाहते हुए नेता न बन जाऊ, जिससे मैं या (आप) ऐसी घटना का शिकार हो जाये । मेरी इस टिप्पणी से आपलोगों को ये लगे शायद कि मै नेता बनाम राजनेता को छोड़ किसी पार्टी विशेष पर यह आरोप लगा रहा हूँ , और किसी अन्य नेता या पार्टी का जिक्र नही कर रहा हूँ, तो ऐसा नही है । आज के परिदृश्य मे कोई भी पार्टी, कोई भी नेता, राजनेता बनने की होड़ से पीछे नही है, चाहे वो भाजपा के पार्टी सुप्रीमो आडवाणी ही क्यों न हो । जिन्होंने बड़े ही आसानी से यहां के लोगों पर धर्मवाद के पक्षधर बनकर यहां की जनता के दिलो पर राज्य करना चाहा, परन्तु अन्ततः सत्ता का मोह ने उन्हें तथा स्वयं पार्टी का भी काफी नुकसान किया । क्योंकि आप कितना भी दिखावा कर ले कितने भी अपने दिखावेपन को असलियत में तब्दील करने की कोशिश कर ले सच्चाई अन्ततः सामने तो आ ही जाती है ।
वरना पूरा हिंदुस्तान जहां एक बदलाव के रूप में उन राजनेताओं से मुक्‍ति के लिए इन्हें सत्ता का भार सौपा, तो इनको लगा कि अब तो ये हमारी पुस्तैनी हो चुकी है, हम भी वैसे ही जनता को मूर्ख बनायेंगे जैसे अन्य करते आये है । इन्हे शायद यह नही लगा था कि जो जनता आपको सिर्फ एक मंदिर के मुद्दे पर सत्ता में वापस ला सकती है, वही जनता सारे मुद्दे होने के बाद चाहे वह महंगाई का हो, आतंकवाद का हो, भ्रष्टाचार का ही क्यों न हो आपको मौका भी नही दे सकती । इस पार्टी के नेता भी इसी बिमारी से पीड़ित हो चुके है, जो राजनेता बनने का स्वप्न है, उन्हें, उनके उत्तरदायित्वों से दूर करता जा रहा है । और अन्य पार्टियां, तो कहिए मत ये भी अपने को कम नही आकते है । चाहे लालू यादव का अपनी ही पत्‍नी को सत्ता मे बनाये रखना हो या मुलायम सिंह का पुत्र मोह और प्रिय मित्र अमर सिंह का अलग होना ।
ये सारी घटनाये सिर्फ राजनेता बनने की चाहत के नतीजे है । जिसे भुगतना आम आदमी को पड़ता है, और मूल्य चुकाना पड़ता है इस देश को-
क्योंकि ये सारे राजनेता, मर्यादाहीन, अतिउत्तेजक एवं विवेकहीन है, जिन्हें स्वयं अपनी मर्यादा तक ख्याल तक नही, वो क्यों किसी देश व समाज का उत्थान करेंगे -
हमें सोचना होगा इन राजनेताओं के बारे में, नही तो हम जीवन भर अपने-आप को कशूरवार ठहराते रह जायेंगे ।
जय हिन्द !

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