Sunday, October 4, 2009

हमारा संकल्प




हमारा संकल्प (लक्ष्य) जो हिमालय की ऊंचाइयों से भी ऊँचा और बुलंद है, जहां हमें आज से काफी पहले पहुँच जाना था, परन्तु हम अपनी मनोकामनाओं की वजह से उसे पाने में असफल रहे । जिसका सारा श्रेय हमी को जाता है, और सिर्फ हमी को । जिसका परिणाम यह है कि हमारे पास हजारों मुश्किलें वही बनी हुई हैं । हम उन मुश्किलों में कमी लाने के बजाय और बढ़ा चुके हैं, तो प्रश्न यह उठता है, कि क्या हम अपने अतीत को भुलाकर एक नये भविष्य की नीव रखें, या उन घटनाओं से सबक लें जो अतीत में घटित हुईं । मेरा मानना है, कि नहीं हम एक नये भविष्य की बुनियाद तो जरूर रखेंगे, मगर अतीत की घटनाओं से जो परिणाम निकले, उसको भी दिमाग में रखेंगे । हम आज फिर वो गलतियां दोहराने की कोशिश कदापि नही करेंगे जो पहले हुईं । हम फिर से जयचंद को अवसर ही नही देगें, जो हमारी बर्बादी, हमारी संस्कृति की बर्बादी का कारण बन सके । हम ऐसे लोगों को भी अवसर नहीं देंगे, जो आजाद रहने पर सत्ता की बागडोर संभालते हैं । और गुलाम होने पर उनके सहकर्मी बन जाते हैं । हमें और इस देश को, इस समाज को ऐसे महानायकों की जरूरत है, ऐसे युवाओं की जरूरत है जो, अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ, देश व समाज के विकास के प्रति स्थिर  व क्रियाशील रह सकें । हम आज एक नई दुनिया (राष्ट्र) की बुनियाद रखेंगे, जिसमें नींव से लेकर गुम्बद तक की हर ईंट, हर वो कण कर्तव्यनिष्ठ, कर्मठी व ईमानदार होगा । यही होगा “हमारा संकल्प” राष्ट्र उत्थान का सामाजिक विकास व समन्वय का ।
  हमारा संकल्प यह तय करेगा की, इसका नेतृत्व कौन करेगा ? कौन इसके सपनों  को मंजिलों में तब्दील करेगा । हमारा संकल्प तब तक पूरा नहीं होगा जब तक इस समाज से, इस देश से उन लोगों का सफाया नहीं हो जाता । जो सत्ता लौलुपता की वजह से हमें तथा इस समाज व देश को बर्बाद करते जा रहे हैं । हमें रोकना है, उन सारे नेताओं को जो देश की सुरक्षा, व्यवस्था के बजाय अपनी सुरक्षा को ज्यादा महत्व देते हैं । जो हमारे आपके सहनशीलता व सांस्कृतिक होने का गलत इस्तेमाल  करते हैं । हमारा संकल्प तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक हम और आप उन लोगों को अवसर देना बन्द नहीं करते । हम सब कुछ जानते हुए भी शांत बने हुए हैं आज हमारे द्वारा चुने गए राजनेता हमें ही पशु ठहराते हैं, हमारी सहनशीलता को हमारी कायरता समझते हैं । हमारे आपके आमदनी की कटौती से अपनी सुविधाओं के लिए खर्च करते हैं । और हम उसे चुपचाप सहन कर जाते हैं, अगर नहीं सह सके तो दो चार गाली देकर दिल को तसल्ली दिला लेते हैं । अगर हमें अपना संकल्प पूरा करना है, तो हमें अपने आप में बदलाव लाना ही होगा । हमें अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ही होगा । किसी महान विचारक ने इस प्रजातंत्र की व्याख्या इस प्रकार से की है -
प्रजातंत्र का अर्थ है, - हजार, लाखों, विद्वानों का नेतृत्व एक मूर्ख के हाथ में होना, जो आज सिद्ध होती दिख रही है । आज हम सारे नौजवान दोस्त जो, किसी न किसी कार्य में निपुण हैं, हम राजनीति, कानून, विज्ञान, सूचना, प्रौद्योगिकी, साहित्य बल, साहस में कुशल होते हुए भी, उन सारे लालची मुर्खों के नेतृत्व में हैं ।
 अगर हमारा नेता मूर्ख है, तो इसका अर्थ यह है, की हम सारे लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि  उसे अवसर हमने दिया है- एक छोटे उदाहरण से ये सारी बातें और भी स्पष्ट हो जाती हैं, वो है चुनाव ।
 चुनाव चाहे सांसद का हो, विधायक का हो या ग्राम प्रधान का ही क्यों न हो, हम उसमें बिल्कुल दिलचस्पी नहीं रखते, हम अर्थात वो सारे लोग, जो चाहे नौजवान हो चाहे बुजुर्ग । जो कैरियर, सेवा, शिक्षा या किसी अन्य कारण की वजह से अपने-अपने क्षेत्रों से बाहर रहते हैं, उनके लिये यह चुनाव कोई मायने नहीं रखता, उनके लिए मायने रखता पर्व-त्यौहार जिसमें वो अपने-आप को उन अवसरों भर पर मनाते हैं । वो वोट को उन पर्व त्यौहारों से ज्यादा महत्व नहीं देते हैं । फिर परिणाम क्या होगा, वही लोग अवसर पायेंगे जो देश को खरीद-फरोख्त से लेकर इसके दामन में दाग लगायेंगे ।
  अगर हमें अपने इस संकल्प को पूरा करना है, तो हमें चेतना लानी होगी उन सभी लोगों में । हमने कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा था, कि लालू यादव से प्रेस कान्फ्रेंस में पूछा गया कि आपके कारनामे अखबार में छपे हैं । इस पर आपके वोटरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? तो उन्होंने जवाब में कहा था कि- हमारी वोटर तो वो जनता है, जो अखबार ही नहीं पढ़ती । आप स्वयं इसका आकलन कर सकते हैं, कि ऐसे राजनेता जनता को किस रूप में देखना चाहते हैं । ऐसे राजनेता हमें तथा उन जनता को शिक्षित भी नहीं देखना चाहते तो वो देश, राज्य व समाज का क्या विकास कर सकते है ः-
 ऐसे हमारे और आपके बीच हजारों घटनाओं के उदाहरण अवश्य होगें ।
  हमारी संकल्पना एक ऐसे निश्‍चय के रूप में होना चाहिये जिसमें हम किसी के साथ किसी भी प्रकार का समझौता न करें । हम अपने और गैर में फर्क न महसूस कर सकें क्योंकि आज का जो समय है, वह फिर नहीं आने वाला है ।
                 जीने के लिये मौत से सौदा नहीं करते,
                 नजदीकियों का भ्रम न हो, लग जायें पालने,
                 ये सोचकर लो गैर से पर्दा नहीं करते ।
                 जाते हुए समय ने यह कहकर विदा ली,
                 लौटेंगे इसी मोड़ पर वादा नहीं करते ॥
फिर भी हम आज जहां हैं, जिस स्थिति में हैं, वह अधिक संतोषजनक तो नहीं, परन्तु हम इसे कुछ समय के लिये संतोषजनक अवश्य समझ सकते हैं, क्योंकि हमारे ही देश के कुछ भागों में इसकी शुरूआत तो हो चुकी है, -
 कोई भी देश, कोई भी समाज बेहतर नहीं होता है । उसे बेहतर बनाया जाता है । और बेहतर होते हैं, वहां के लोग । जो उसे बेहतर बनाते हैं । आज दुनिया में काफी बदलाव आ चुका है । हमें बदलाव के साथ अपने समाज को, देश को नयी दिशा देनी होगी , एक नई क्रांति लानी होगी जिससे देश को इन परिस्थितियों से उबार सकें । और विश्‍व पटल पर वर्चस्व स्थापित करें । 
  इसको पाने के लिए हमें भले ही शांति ही भंग क्यों न करनी पड़े । हमें बुद्ध और गाँधी के वचनों को झुठलाना ही क्यों न पड़े । आज जरूरत है, देश को हमारी, और हम उम्मीद करते हैं, कि आप और हम एकजुट होकर तैयार हैं, इसके संकल्प को पूरा करने के लिए । अगर ऐसा हुआ तो, मैं उम्मीद करता हूँ की जो हमारे देश से वो सारी समस्यायें अवश्य दूर हो जायेंगी, चाहे वह भ्रष्टाचार का हो या आतंकवाद का, अशिक्षा का हो या भुखमरी का । वास्तव में देखा जाय तो सारी समस्याओं की जड़ है, कि कौन शुरूआत करे ? सबके अंदर एक उबाल है, जैसे लगता है कि एक बीमारी से सब पीड़ित हैं । सबकी स्थिति ठीक वैसे ही है -
     “सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्यों है,
       इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है?
जरूरत है, मार्गदर्शक की, कौन पहले उठे कौन दिशा निर्देश दे, कि हमें क्या करना चाहिए ?
   अगर हमें अपना संकल्प पूरा करना है तो हम सबको आगे आना ही होगा । नींव की ईंट तो बननी ही पड़ेगी । क्योंकि बिना उस ईंट की इमारत मैं उम्मीद तो नहीं हो सकती । मैं उम्मीद करता हूँ, आप सभी से की आपमें से हर व्यक्‍ति जरूर तैयार होगा नींव की ईंट बनने के लिए । क्योंकि पूजन तो उसी ईंट की होता है, जो सबसे पहले इमारत में लगती है । बलिदान तो उसी का महत्वपूर्ण होता है । यह तो अलग ही बात है, कि उस पर नकासी नहीं होती उस पर सजावटें नहीं होतीं ।
   मैं उम्मीद करता हूँ कि हमारा संकल्प एक ऐसा स्वप्न है, जो रात में सोने के वक्‍त नहीं देखा गया, बल्कि वो स्वप्न है जिसकी वजह से हम रात को सो नहीं पाते हैं । हमारा संकल्प एक ऐसी उम्मीद है, जिसको हमें हर कीमत पर सत्यार्थ करना ही होगा । इसको पाने के लिये हमें साहस, धैर्य, बलिदान व त्याग की जरुरत है । हमें अपने अन्दर से कायरता, द्वेष को नष्ट करना पड़ेगा । ” हमें अपने आप को खुद बदलना होगा, क्योंकि हम किसी दूसरे महापुरूष का अनुसरण तो दूर उसमें दिलचस्पी भी नहीं रखते । अगर ऐसा नहीं होता तो, गीता, कुरान पढ़कर महात्मा बुद्ध, गाँधी का अनुसरण करके आज हम कहाँ होते । मगर हम सिर्फ समस्याओं को समाप्त करने के बजाय दूसरे को जिम्मेदारी कहकर टालते चले जाते हैं । जिसका परिणाम हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में कहीं न कहीं अवश्य दिखता है । आज जरूरत है, हर व्यक्‍ति को कि वो समस्याओं से लड़े वह खुद ही गाँधी भी है, सुभाष भी है, और स्वयं गीता और कुरान का प्रतिनिधि भी, क्योंकि जब तक हम अपनी शक्‍तियों को अपने विद्वता को खुद नहीं समझेंगे, उस पर विश्‍वास नहीं करेंगे तब तक हम  किसी समस्या का समाधान क्या किसी छोटे से कार्य को भी नहीं कर सकते ! स्वयं स्वामी जी ने कहा है,
                          ``you can not believe God,
                                      until you believe in yourself ''


तो जरूरत है । अपने आत्मविश्‍वास को जगाने की और लोगों में एक नयी-चेतना लाने की, जिससे हर व्यक्‍ति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए, अपने कर्तव्य का पालन करे । तो वह दिन दूर नहीं होगा जिस दिन हमारा संकल्प पूरा होगा हमारी मंजिल हमें मिलेगी ।
 जब एक छोटे से कार्य में परेशानियाँ आ सकती हैं, तो हम तो बहुत बड़े ही अभियान की शुरूआत करने जा रहे हैं तो, हमें परेशानियां तो अवश्य मिलेंगी । मगर उससे हमें विचलित नहीं होना चाहिए । और अन्त में मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा -
                       मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं,
                       स्वप्न के वादे निगाहों से हटाती हैं,
                       हैं, सलामत हार , गिर कर ओ मुसाफिर
                       ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं ।